शुक्रवार, 28 सितंबर 2007

बाढ़ और अफ़वाह II



बाढ़ और अफ़वाह की अगली किस्त विजय की डायरी से
8 सितंबर 2007

आज रात क़रीब आ बजे हमलोग एक दालान में बैठ कर क्रिकेट देख रहे थे। अचानक किसी की आवाज़ आई कि बाँध टूट गया है, वो भी अपने गाँव का। ह क्रिकेट छोड़कर दालान से बाहर निकले और देखने लगे कि कौन हल्ल कर रहा है। गाँव की तरफ़ से आवाज़ आ रही थी। सब अपने-अपने घर कि तरफ़ लपके। एक ही पल में भगदड़- मच गई। सब अपनी-अपनी जान बचाने के लिए इधर-उध भागने लगे। किसी को देखा कि अपना सामान लेकर वो कहीं ऊँचे स्थान पर जाकर बैठ गया, तो कुछ लोग खाने से लेकर पहनने तक का सामान लेकर किसी तरफ़ भागे जा रहे थे। कहीं से बच्चे की रोने कि आवाज़ आ रही थी तो कहीं से छत वाले मकानों की तरफ़ भागने की अपील। उस समय मैं सोचने लगा कि अब किया क्या जाएकैसे सब लोगों को बचाया जाए

तभी मेरे दिमाग़ में ये ख़याल आया कि आख़िर बाँध किस तरफ़ टूटा है उसका पता लगना ज़्यादा ज़रूरी है। मैं गाँव कि तरफ़ भागा। किसी से रोककर पूछना चाहा लोगों के पास इतना समय नहीं था कि वो मुझसे कुछ बात कर सकते। एक नौजवान अपनी बुढ़ी माँ को बाढ़ में डूबने से बचाने के लिए छत पर ले जा रहा था। किसी को देखा अपनी बच्ची को गोद में लेकर पड़ोसी के छत वाले घर की तरफ़ भाग रहा था। फिर मेरे दिमाग़ में एक ख़याल आया कि जिसका घर बाँध के पास है उससे फ़ोन करके पूछता हूँ कि क्या सही में बाँध टूट गया है। जब मैंने फ़ोन पर पूछा कि क्या सही में बाँध टूट गया है? तो वो बोला, ‘‘नहीं तो, कहाँ बाँध टूटा है! ये झूठी अफ़वाह है।’’ तब जाकर मेरी जान में जान आई और सब लोगों को बताया कि बाँध टूटा नहीं है। ये ग़लत अफ़वाह है। उसके बाद सब अपने-अपने घर में जाकर चैन से बैठे और सारा सामान वापस लाकर घर में रखे। ये तो उस रात कहानी है।

उदयपुर फ़िल्म मेकिंग वर्कशॉप से लौटने के बाद अपने-आप में मैंने कुछ बदला तो ज़रूर महसूस किया है। जब यहाँ आया तो लोग पूछते थे और अब भी पूछते हैं, कहाँ गया था? क्या सीख कर आया है?’’ जब वे मेरे हाथ में कैमरा देखते हैं तो पूछते हैं कि इससे मैं क्या करूँगा। तब बताता हूँ कि फ़िल्म बनाना सीख रहा हूँ। उसी के लिए शूटिंग कर रहा हूँ। जब लोग हमारी फ़िल्में देखते हैं तो पूछते हैं, ‘‘ये बनाकर क्या करोगे?’’ मेरे पास उनके सवालों का कोई ठोस जवाब नहीं होता है। अपनी तरफ़ से कुछ उलट-सीधा समझा देता हूँ। मेरे कुछ दोस्तों ने इस वीडियो कैमरा का एक और उपयोग ये बताया, ‘‘तुम अपना फ़िल्म भी बना लेना और सरकारी कर्मचारी जो ग़लत तरीक़े से कोई काम करते हैं वो कैमरे की डर से नहीं करेंगे। कल बाढ़ राहत मिलेंगे है। सबको अनाज और पैसे बँटेंगे। तुम बाढ़ राहत पर फ़िल्म बनाना। कुछ शूटिंग वहाँ कर लेना सरकारी कर्मचारी से कुछ पूछकर उसको कैमरे में ले लेना। इससे फ़ायदा ये होगा कि वो कर्मचारी कैमरे के सामने न झूठ बोलेंगे और न ही कुछ चोरी करेंगे।’’

वैसे मैंने बाढ़ की कुछ शूटिंग की है। अगर मेरे कैमरे से गाँववासियों का और गाँव का थोड़ा-सा भी भला हो जाए तो मैं समझता हूँ कि कैमरा और मैं किसी काम आ सके। मैं चाहता हूँ कि इस गाँव की सूरत और सीरत बदलनी चाहिए। गाँव में जो अनपढ़ लोग हैं वो पढ़ें और यहाँ की क़ानून-व्यवस्था को जानें-समझें। सब मिलकर एक साफ़-सुथरा गाँव बनाएँ।

आभार: चन्दन शर्मा

3 टिप्‍पणियां:

अनुनाद सिंह ने कहा…

हिन्दी चिट्ठाकारी मेM आपका स्वागत है।

शिक्षा के बारे में आपके ब्लाग पर उल्लिखित सूक्ति बहुत अर्थपूर्ण लगी।

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा ने कहा…

बस हमें चाहिए, बात हो रही है..कदम उठ रहे हैं..भले ही लोग ना माने लेकिन गांव से तो ये आवाज आ रही है न -
गाँव में जो अनपढ़ लोग हैं वो पढ़ें और यहाँ की क़ानून-व्यवस्था को जानें-समझें। सब मिलकर एक साफ़-सुथरा गाँव बनाएँ।
बस हमें यही चाहिए......और कुछ भी नहीं...
हम आगे बढ़ रहे हैं....एकदम स्पीड से भाई..

सफ़र ने कहा…

अनुनाद और गिरीन्द्र भाई


शुक्रिया. निश्चित रूप से सफ़र को आप जैसे शुभचिंतकों के प्रोत्साहन की ज़रूरत है. सफ़र अपने सरोकारों और कार्य्रक्रम के इर्द-गिर्द विचार-विनिमय की हर संभव कोशिश करेगा. सफ़र के कार्यक्रमों को ज़रूर पढ़ें और देखें कि आप किस प्रकार इस मुहिम का हिस्सा बन सकते हैं. सच मानिए, ये मुहिम ही है, और हम सभी को किसी न किसी तरह इससे जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए.


सलाम