ज़माने के लब्ध -प्रतिष्ठित गीतकार यश मालवीय
शुरुआत से ही सफ़र के हमसफ़र हैं.
पेश है सफ़र को उनका दिया तोहफ़ा :
‘सफ़र’ का सफ़र है
सफ़र में ओ साथी
सभी को हृदय से, गले से लगाना
जो सोया है अपना सवेरा जगाना
सफ़र है ये बच्चों, जवानों सभी का
सफ़र है ये कुचले हुए आदमी़ का
ये दो जून का है, ये क़ानून का है
सफ़र है ये औरत की गुम जिन्दगी का
‘सफ़र’ का सफ़र है
सफ़र में ओ साथी
कोई विरवा लगाना उगाना
जो तिल भर है आलस उसे भी भगाना
सफ़र है किताबों का, ये कॉपियों का
सफ़र बिस्कुटों का है, ये टॉफियों का
सफ़र में है शिक्षा, सफ़र में परीक्षा
सफ़र ये नहीं अब तो कमज़ोरियों का
‘सफ़र’ का सफ़र है
सफ़र में ओ साथी
कि हक़ छीन लेना, बदलना ज़माना
कि गाने लगे फिर से ये आबोदाना
सफ़र में नहीं पांव में बंदिशें हैं
ये जीने की बेहतर सी कुछ कोशिशें हैं
सफ़र ये शहर का, सफ़र गांव का है
सफ़र में परिन्दों सी कुछ ख्वाहिशें हैं
‘सफ़र’ का सफ़र है
सफ़र में ओ साथी
हवा में मचलना, पतंगे उड़ाना
चिरागों से जलना, मशालें जलाना.
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