अभय कुमार
हमारे गांव में एक बहुत पुरानी नदी है जिसे हम पुरानी बागमती के नाम से जानते हैं. पहले उसमें अच्छा-ख़ासा पुल था. क़रीब 12-13 साल पहले वह पुल ध्वस्त हो गया या कहें कि बाढ़ में टूट कर बह गया. बाद में सरकार की ओर से दुबारे पुल बनाने का निर्णय हुआ. गांव की जनता में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी क्योंकि पुल न होने पर लोगों को बाढ़ के दिनों में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता था.
हां, तो जब पुल बनाने की सरकारी घोषणा हुई तो हमलोग बहुत ख़ुश हुए. टेंडर हुआ. किसी बाहर के आदमी को यह काम मिला. उसने बड़े ज़ारे-शोर से इस पर काम करना शुरू किया. पर कुछ समय के बाद धीरे-धीरे काम में ढिलाई होने लगी और एक समय के बाद वह रुक गया. ऐसा क्यों हुआ, ये तो मुझे ठीक-ठीक नहीं मालूम है. मैंने अपने तईं इसका कारण जानने की भरसक कोशिश की. मुझे जो जानकारी मिली उसके हिसाब से जिस ठीकेदार को यह काम मिला था उससे हमारे गांव के कुछ दबंग लोगों ने रंगदारी टैक्स के तौर पर दो लाख रुपए की मांग की. वह ठीकेदार रंगदारों की बात मानने से साफ़-साफ़ इंकार कर दिया. इससे क्षुब्ध होकर स्थानीय रंगदारों ने कार्यस्थल पर आकर काम रुकवा दिया, मज़दुरों के साथ मारपीट की और दो-तीन हवाई फ़ायरिंग भी की.
कुछ समय बाद ठीकेदार ने काम शुरू करवाने की कोशिश की लेकिन स्थानीय बदमाशों ने उसके सामने फिर वैसी ही मांग रखी और पैसा न देने की स्थिति में काम न करने देने और ठीकेदार के परिवार को तवाह करने की धमकी दी. आज उस पुल का यह हाल है कि पुल बनाने के लिए जो औज़ार लाए गए थे वह कार्यस्थल के पास काफ़ी हद तक ज़मीन में धंस चुके हैं. कुछ छोटी-मोटी चीज़ें तो लोग उठाकर अपने-अपने घर ले गए या कवाड़ी वाले के हाथों बेच दिया. नदी की हालत ऐसी है थोड़ा भी पानी आ जाने की स्थिति में आवागमन अवरुद्ध हो जाता है. सुनने में यह भी आया है कि उस ठीकेदार का बिल भी पास हो चुका है और उसे पैसे भी मिल चुके हैं. इसलिए अगर कहें कि, ‘पुल गया ढुल, बिल हुआ पास इसी लिए बिहार है ख़ासमख़ास’ तो ग़लत नहीं होगा.
2 टिप्पणियां:
चलिए अच्छा ही हुआ कि पुल बन नहीं पाया। एकबार फिर मरम्मत का टेंडर निकलेगा, ठेका मिलेगा,लोगों को सामान चुराने का मौका मिलेगा, और मेरी शुभकामनाएं रही तो बदमाशों को रंगदारी टैक्स भी। वो भी समाज का हिस्सा है कहां जाकर पेट पालेगा।
panchyti raj ka sapna sakar hoga tabhi bihar me pool, pooliya aur sarken aam janta ke niyantran me ban sakengi.
aaj jarurat hai ek aise platform ki jo janta ko unke rights, legal remedies aur shasan tak unki pahuchne ka rasta dikhye.
suraj sinha
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