सोमवार, 16 नवंबर 2009
'आमने-सामने' में इस बार यश मालवीय
सफ़र के अनियमित श्रृंखला आमने-सामने में इस दफ़ा यश मालवीय अपने कुछ गीत सुनाएंगे और फिर प्रख्यात कवयित्री अनामिका के सानिध्य में श्रोता उनसे सीधी बातचीत करेंगे.
सफ़र द्वारा पिछले साल आरंभ किया गया यह कार्यक्रम सचमूच नायाब है, इसलिए कि इसके तहत कोई भी रचनाकार न केवल समय निकाल कर फूर्सत से अपनी पसंदीदा रचनाएं सुनाते हैं बल्कि लोगों को उनसे उनकी रचनाओं के साथ-साथ उनके रचना कर्म समेत जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी बातचीत करने का मौक़ा होता है. कोशिश यह है कि इसके ज़रिए लोग उनकी रचनाओं के मार्फ़त उन्हें जानें ही, पर उससे भी आगे बढकर उनके व्यक्तित्व और व्यवहार को भी जानें. सफ़र को यह ख़ुशी है कि इस श्रृंखला की शुरुआत समकालीन पसंदीदा रचनाकार और हंस के संपादक राजेंद्र यादव जी द्वारा लघुकथाओं और उनकी कुछ चुनी हुई कविताओं के पाठ के साथ हुआ था और साथ में थीं अर्चना वर्मा. वज़ीराबाद की संकरी गलियों से गुज़र कर राजेंद्रजी, अर्चना जी और उनको जानने-सुनने के इच्छूक चालीस-पैंतालीस लोग सफ़र के दफ्तर में इकट्ठा हुए थे. उसी सफलता से प्रेरित हो कर सफर ने इस बार अपने ज़माने के पसंदीदा नवगीत लेखक तथा लोकप्रिय कवि श्री यश मालवीयजी को आमंत्रित किया है. यश मालवीय ने उदयप्रकाश के उपन्यास पर आधारित फिल्म 'मोहनदास' के लिए बड़े सुंदर गीत लिखे हैं. मेरे खयाल से अपने जमाने में शायद ही कोई कवि या गीतकार होंगे जो अकादमियों या सभागारों से बाहर जाकर कविता पाठ करते होंगे, यश भाई उस लिहाज़ से बहुत बड़े अपवाद हैं. इलाहाबाद में लगने वाला माघ मेला का पंडाल हो, या दिल्ली में अंबेडकर जयंती पर सामुदायिक पार्क में खुले आसमान के नीचे होने वाले कार्यक्रम: उनके गीत लोगों को थम कर सुनने को मजबूर करती रही हैं.
उम्मीद है दिल्ली में रहने वाले साहित्यप्रेमी और सृजनशील लोग इस मौक़े का लाभ ज़रूर उठाएंगे.
सफ़र द्वारा पिछले साल आरंभ किया गया यह कार्यक्रम सचमूच नायाब है, इसलिए कि इसके तहत कोई भी रचनाकार न केवल समय निकाल कर फूर्सत से अपनी पसंदीदा रचनाएं सुनाते हैं बल्कि लोगों को उनसे उनकी रचनाओं के साथ-साथ उनके रचना कर्म समेत जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी बातचीत करने का मौक़ा होता है. कोशिश यह है कि इसके ज़रिए लोग उनकी रचनाओं के मार्फ़त उन्हें जानें ही, पर उससे भी आगे बढकर उनके व्यक्तित्व और व्यवहार को भी जानें. सफ़र को यह ख़ुशी है कि इस श्रृंखला की शुरुआत समकालीन पसंदीदा रचनाकार और हंस के संपादक राजेंद्र यादव जी द्वारा लघुकथाओं और उनकी कुछ चुनी हुई कविताओं के पाठ के साथ हुआ था और साथ में थीं अर्चना वर्मा. वज़ीराबाद की संकरी गलियों से गुज़र कर राजेंद्रजी, अर्चना जी और उनको जानने-सुनने के इच्छूक चालीस-पैंतालीस लोग सफ़र के दफ्तर में इकट्ठा हुए थे. उसी सफलता से प्रेरित हो कर सफर ने इस बार अपने ज़माने के पसंदीदा नवगीत लेखक तथा लोकप्रिय कवि श्री यश मालवीयजी को आमंत्रित किया है. यश मालवीय ने उदयप्रकाश के उपन्यास पर आधारित फिल्म 'मोहनदास' के लिए बड़े सुंदर गीत लिखे हैं. मेरे खयाल से अपने जमाने में शायद ही कोई कवि या गीतकार होंगे जो अकादमियों या सभागारों से बाहर जाकर कविता पाठ करते होंगे, यश भाई उस लिहाज़ से बहुत बड़े अपवाद हैं. इलाहाबाद में लगने वाला माघ मेला का पंडाल हो, या दिल्ली में अंबेडकर जयंती पर सामुदायिक पार्क में खुले आसमान के नीचे होने वाले कार्यक्रम: उनके गीत लोगों को थम कर सुनने को मजबूर करती रही हैं.
उम्मीद है दिल्ली में रहने वाले साहित्यप्रेमी और सृजनशील लोग इस मौक़े का लाभ ज़रूर उठाएंगे.
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1 टिप्पणी:
bahut achha....
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