रामप्रवेश राम
मेरा घर गांव के सबसे आखिर में है. दरअसल यह अनुसूचित जाति का मोहल्ला है. बहुत पहले तो हमारे टोले के बाद कुछ ही घर उंची जाति वालों के थे. पर अब जैसे-जैसे उनका वालों बढ़ रहा है वे लोग और आगे हटकर अपना घर बना रहे हैं. पर हमारे टोले की स्थिति वैसी ही है. घरों की संख्या भी ज़्यादा नहीं बढ़ी है. हां दो-चार ईंट के मकान ज़रूर बन गए हैं. वो भी उन्हीं के, जिनके बच्चों ने गांव से निकल कर मेहनत-मज़दूरी की. दो पैसे जमा किए. पर ईंट के मकान दो-चार ही हैं. पर उनमें रहने वाले आज भी शरीर से मेहनत करते हैं, दिल्ली, लुधियाना, जलंधर, मुज़फ़्फ़रपुर जैसे छोटे-बड़े शहरों में रिक्शा खींचते हैं, दुकान में काम करते हैं ...
मेरे घर के आसपास हर साल अषाढ़ से कार्तिक तक वर्षा के कारण जलजमाव रहता है. टोले के लोगों को बहुत परेशानी होती है. मेरे घर से उत्तर दिशा में एक बांध है. हर साल बाढ़ के दिनों में उसके टूटने की आशंका बनी रहती है. कभी-कभी टूट भी जाती है. और जब बांध टूटती है तो हमलोगों को जी-जान लेकर इधर-उधर भागना पड़ता है. मुझे लगता है कि इस बांध को अगर नहीं बांधने दिया होता तो आज ये परेशानी नहीं होती.
हमारे टोले के चारो तरफ़ जलजमाव रहता है. पानी निकलने का कोई रास्ता है ही नहीं. इसके कारण टोले के लोगों खाने-पीने से लेकर स्वास्थ संबंधी बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. डायरिया तो बहुत आम बीमारी होती है बरसात के दिनों में. हर साल बरसात के मौसम में चारो तरफ़ पानी लगे होने के कारण पैदा होने वाली के बीमारी के चलते एक न एक मौत होती है. अकसर बच्चे मौत के शिकार बनते हैं. गांव में एक अस्पताल है. कहने को तो रेफ़रल हॉस्पिटल है, पर उसको देखकर आपको भी डर लगेगा. सुनसान पड़ा रहता है. मैं इसी गांव में रहता हूं पर मुझे भी नहीं मालूम कि डॉक्टर आता भी है कि नहीं. और आता है तो कब आता है. अब ऐसी हालत में साइकिल पर घुम-घुम कर डाक्टरी करने वाले के पास ही हमें भागना पड़ता है.
हमारे मवेशियों के लिए तो ये मौसम और भी तकलीफ़देह होता है. हम लोगों के पास भूसा जमा करने की न जगह है और न ही साधन, जिसके चलते बरसात के मौसम में चारे की कमी के कारण मवेशियों को बहुत तकलीफ़ होती है. बच्चा तो है नहीं कि एक रोटी के टुकड़े से उसका पेट भर जाएगा. ऐसी हालत में कभी किसी की बकरी तो कभी किसी की गाय तो किसी की बाछी की मौत हो जाती है.
हमारे टोले तक आने-जाने के लिए सड़क नहीं है. जिसके चलते शादी-ब्याह के दिनों में बहुत दिक़्क़त होती है. कभी-कभी तो रास्ते के लिए टोले वालों के बीच आपस में झगड़ा भी हो जाता है.
बरसात के दिनों में तो समझिए कि सारे टोले वाले नज़रबंदी की स्थिति में होते हैं. बच्चों का स्कूल आना-जाना भी बंद हो जाता है. कैसे जाएंगे बच्चे स्कूल, इतना पानी होता है चारो ओर कि वो डूब जाएंगे.
दो महीने पहले जब एक रात बांध टूटने का हल्ला हुआ तो हमारे टोले के लोगों ने जो भी अनाज उनाज था उसकी गठरी-मोटरी लेकर उंची जगहों की ओर भागने लगे थे. उन्होंने अपने मवेशियों की रस्सी भी खोल दी थी.
बाढ़ के बाद सरकार की ओर से रिलीफ़ बंटने की घोषणा हुई. कई वार्डों में रिलीफ़ बटे भी. पर हमारे वार्ड के लोग आज भी रिलीफ़ के इंतजार में हैं. उनमें बहुत गुस्सा है. पर क्या करें, मुखिया उनकी बात ही नहीं सुनता है. मैं सफ़र का कार्यकर्ता हूं गांव में. मैंने लोगों को कहा कि एक साथ इकट्ठा होकर चलते हैं सब लोग मुखिया के दरवाज़े पर लेकिन कुछ औरतों के अलावा लोग आगे आने को तैयार ही नहीं हैं. मर्द तो एक भी आगे आने को राजी नहीं हैं. ऐसी हालत में हम दो-चार कार्यकर्ता क्या कर सकते हैं.