बाढ़ और अफ़वाह की अगली किस्त विजय की डायरी से
8 सितंबर 2007
तभी मेरे दिमाग़ में ये ख़याल आया कि आख़िर बाँध किस तरफ़ टूटा है उसका पता लगना ज़्यादा ज़रूरी है। मैं गाँव कि तरफ़ भागा। किसी से रोककर पूछना चाहा लोगों के पास इतना समय नहीं था कि वो मुझसे कुछ बात कर सकते। एक नौजवान अपनी बुढ़ी माँ को बाढ़ में डूबने से बचाने के लिए छत पर ले जा रहा था। किसी को देखा अपनी बच्ची को गोद में लेकर पड़ोसी के छत वाले घर की तरफ़ भाग रहा था। फिर मेरे दिमाग़ में एक ख़याल आया कि जिसका घर बाँध के पास है उससे फ़ोन करके पूछता हूँ कि क्या सही में बाँध टूट गया है। जब मैंने फ़ोन पर पूछा कि क्या सही में बाँध टूट गया है? तो वो बोला, ‘‘नहीं तो, कहाँ बाँध टूटा है! ये झूठी अफ़वाह है।’’ तब जाकर मेरी जान में जान आई और सब लोगों को बताया कि बाँध टूटा नहीं है। ये ग़लत अफ़वाह है। उसके बाद सब अपने-अपने घर में जाकर चैन से बैठे और सारा सामान वापस लाकर घर में रखे। ये तो उस रात कहानी है।
उदयपुर फ़िल्म मेकिंग वर्कशॉप से लौटने के बाद अपने-आप में मैंने कुछ बदलाव तो ज़रूर महसूस किया है। जब यहाँ आया तो लोग पूछते थे और अब भी पूछते हैं, कहाँ गया था? क्या सीख कर आया है?’’ जब वे मेरे हाथ में कैमरा देखते हैं तो पूछते हैं कि इससे मैं क्या करूँगा। तब बताता हूँ कि फ़िल्म बनाना सीख रहा हूँ। उसी के लिए शूटिंग कर रहा हूँ। जब लोग हमारी फ़िल्में देखते हैं तो पूछते हैं, ‘‘ये बनाकर क्या करोगे?’’ मेरे पास उनके सवालों का कोई ठोस जवाब नहीं होता है। अपनी तरफ़ से कुछ उलटा-सीधा समझा देता हूँ। मेरे कुछ दोस्तों ने इस वीडियो कैमरा का एक और उपयोग ये बताया, ‘‘तुम अपना फ़िल्म भी बना लेना और सरकारी कर्मचारी जो ग़लत तरीक़े से कोई काम करते हैं वो कैमरे की डर से नहीं करेंगे। कल बाढ़ राहत मिलेंगे है। सबको अनाज और पैसे बँटेंगे। तुम बाढ़ राहत पर फ़िल्म बनाना। कुछ शूटिंग वहाँ कर लेना सरकारी कर्मचारी से कुछ पूछकर उसको कैमरे में ले लेना। इससे फ़ायदा ये होगा कि वो कर्मचारी कैमरे के सामने न झूठ बोलेंगे और न ही कुछ चोरी करेंगे।’’
वैसे मैंने बाढ़ की कुछ शूटिंग की है। अगर मेरे कैमरे से गाँववासियों का और गाँव का थोड़ा-सा भी भला हो जाए तो मैं समझता हूँ कि कैमरा और मैं किसी काम आ सके। मैं चाहता हूँ कि इस गाँव की सूरत और सीरत बदलनी चाहिए। गाँव में जो अनपढ़ लोग हैं वो पढ़ें और यहाँ की क़ानून-व्यवस्था को जानें-समझें। सब मिलकर एक साफ़-सुथरा गाँव बनाएँ।
आभार: चन्दन शर्मा