शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009
दशहरा सच
तुम रावण को हर साल मारते हो
फिर उसे जिंदा करते हो
फिर मारते हो
फिर उसे जिंदा करते हो
उस बदनाम को हर साल
जिंदा कर मारने में भी
तुम्हारा स्वार्थ है
कि जिंदा रखना चाहते हो तुम
तुम्हारे राम को
जिंदा रखना चाहते हो
तुम तुम्हारे हिंदुत्व को
जिंदा रखना चाहते हो
तुम वो राम की कुटनीती
और
जिंदा रखना चाहते हो
रावण को
जताने को राम का अस्तित्व
थोपने को राम का झूटा चरित्र
फिर उसे जिंदा करते हो
फिर मारते हो
फिर उसे जिंदा करते हो
उस बदनाम को हर साल
जिंदा कर मारने में भी
तुम्हारा स्वार्थ है
कि जिंदा रखना चाहते हो तुम
तुम्हारे राम को
जिंदा रखना चाहते हो
तुम तुम्हारे हिंदुत्व को
जिंदा रखना चाहते हो
तुम वो राम की कुटनीती
और
जिंदा रखना चाहते हो
रावण को
जताने को राम का अस्तित्व
थोपने को राम का झूटा चरित्र
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2 टिप्पणियां:
दशहरे का यह सच थोडी देर से आया ...अब तो दिवाली भी मन चुके ...
अच्छी कविता ...शुभकामनायें ..!!
जिंदा रखना चाहते हो
रावण को
जताने को राम का अस्तित्व
थोपने को राम का झूटा चरित्र
देर आयद दुरूस्त आयद, शायद यही सच है
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