सोमवार, 30 जून 2008
आईआईटी के संघर्ष ने जगायी न्याय की उम्मीद
दोहराने की ज़रूरत नहीं है कि IIT Delhi ने इस महीने की शुरुआत में 28 छात्रों को यह कहकर संस्थान छोड़ने का नोटिस जारी किया कि उनका प्रदर्शन संस्था की साख से मेल नहीं खाती. बेहतर है कि समय रहते वे संस्थान छोड़ दें. जब तक यह बात जनता में आयी तब तक घटनाक्रम की एक परत और खुली और पता चला कि IIT, Delhi से निष्कासित किए गए छात्रों में अस्सी फ़ीसदी तो दलित हैं और शेष पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यक समुदायों से हैं. पीडि़त छात्रों का एक समूह केंद्रिय अनुसूचित/जनजाति आयोग का दरवाज़ा भी खटखटाया था, जिसके बाद आयोग ने आईआईटी प्रशासन से जवाब-तलब किया था और सुनवाई की अगली तारीख़ पर विस्तृत रपट पेश करने को कहा था.
22 जून को नयी दिल्ली में इनसाइट फ़ाउन्डेशन द्वारा बुलाई गयी एक बैठक में आईआईटी, दिल्ली के वैसे कुछ छात्रों ने संस्थान में दलित और पिछड़े तबक़े के छात्रों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में विस्तार से बताया था जिन्हें संस्थान ने कैंपस छोड़ देने का नोटिस दे चुकी है. तत्काल कैंपस न छोड़ने की स्थिति में उनसे 150 रुपए रोज वसूला जा रहा है . उन्होंने बताया कि उनकी जाति जानने के बाद शिक्षकों के तेवर अचानक कैसे बदल जाते हैं. अचानक कैसे शिक्षकों को यह लगने लगता है कि आरक्षण के सहारे आये इन मुट्ठी भर छात्रों के कारण इस प्रतिष्ठित संस्थान की साख में बट्ठा लग जाएगा. बस जाति खुल जाने की देरी है, उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के तरीक़े इज़ाद करने में तो माहिर ही हैं अध्यापक और प्रशासन के लोग. और तो और हॉस्टल और मेस में काम करने वाले कर्मचारी भी पीछे नहीं रह जाते हैं दलित छात्रों को अपनी औकात का एहसास कराने में.
ताज़ा घटनाक्रम के बारे में छात्रों का कहना था कि शिक्षकों द्वारा ख़ास तौर दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों को छात्रों को निशाना बनाने की यह कोई पहली घटना नहीं है. हर साल 3-4 बच्चों को कोई न कोई बहाना बनाकर संस्थान से निकाला जाता रहा है. इस बार मामला इसलिए बड़ा बन गया कि क्योंकि निष्कासित किए जाने वाले छात्रों की संख्या ज़्यादा थी. और ये छात्र फ़र्स्ट इयर से लेकर फ़ाइनल इयर तक के थे. छांत्रों ने ये बताया कि वहां कोई निश्चित परीक्षा प्रणाली नहीं है और न ही परीक्षा में पास होने के लिए कोई निर्धारित अंक. ऐसे में जम कर मनमानी करते हैं वहां के शिक्षक.
एक छात्र ने बताया कि जब भी छात्रों ने हॉस्टल में अंबेडकर जयंती मनाने की कोशिश की, प्रशासन ने नाकाम कर दिया. आईआईटी, दिल्ली के एससी/एसटी इम्प्लॉयज वेलफ़ेयर एसोसिएशन के महासचिव नरेंद्र भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं, ''स्टूडेंट्स को छोडिये, ऐडमिनिस्ट्रेशन हमें नहीं मनाने देता था अंबेडकर जयंती यहां पर. पिछले दो-तीन सालों ने हमने लड़-झगड़ कर बाबा साहब की जयंती पर कार्यक्रम करना शुरू किया है.''
26 जून 200 को सफ़र, एनसीडीएचआर, नैक्डोर, इनसाइट फ़ाउण्डेशन, JNUSU के संयुक्त तत्वाधान में JUSTICE FOR IIT STUDENTS के बैनर तले छात्रों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आईआईटी ने विरोध प्रदर्शन किया. 26 जून का वो विरोध प्रदर्शन भारत के छात्र आंदोलन और दलित आंदोलन के लिए एक महत्तवपूर्ण तारीख़ बन गया. दुनिया में श्रेष्ठ इंजिनीयर पैदा करने का दावा करने वाले इस संस्थान के 40 साल के इतिहास में 26 जून को किया गया विरोध-प्रदर्शन अब तक वहां किया गया किसी भी तरह का पहला प्रदर्शन था. इसने प्रशासन के होश ठिकाने लगा दिए. छात्रों के भविष्य के साथ किए जा रहे खिलवाड़ का जवाब मांगने जब प्रदर्शनकारी आईआईटी कैंपस में पहुंचे तो उनकी तो हवा ख़राब हो गयी. पूरा प्रशासन हरकत में आ गया. थोड़ी देर में ऐडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. महिला प्रदर्शनकारियों पर भी डंडा बरसाने की कोशिश की गयी और ये काम पुरुष सिपाही ही कर रहे थे.
प्रदर्शनकारियों ने जब छात्रों के निष्कासन का कारण पूछना शुरू किये तो स्टूडेंट वेलफेयर एस आर काले और डिप्टी डायरेक्टर एच सी गुप्ता की हालत ख़राब हो गयी, उनके जबान लड़खलड़ानें लगे. अ....आ.... के आगे बढ़ नहीं पाए. कक्षाओं और परीक्षाओं के इतर आईआईटी की रोज़मर्रा में छात्रों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में जब उनसे पूछा गया तो एक बार फिर उनकी घिघ्घी बंध गयी. बार-बार वे ये ही कहते रहे कि कमेटी बना दी गयी है, कमेटी का जो निर्णय होगा उसका वे पालन करेंगे. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि जो कमेटी गठित की गयी है वो छात्रों को अमान्य है, उसमें उत्पीड़कों के नुमांइदे ही हैं. प्रदर्शनकारियों ने मांग की जो भी कमेटी गठित की गयी है उसे तत्काल भंग किया जाए और नयी कमेटी गठित की जाए और उसमें निष्पक्ष लोगों को शामिल किया जाए. प्रदर्शनकारियों ने इसके लिए आईआईटी प्रशासन को 5 दिन का समय दिया.
बहरहाल, दलित और पिछड़े तबके के छात्रों के इस निष्कासन और उसके बाद राजधानी में शुरू हुए हलचल से यह तो स्पष्ट हो गया है कि उच्च शिक्षा का यह प्रतिष्ठित संस्थान मनुवादियों का बहुत बड़ा अखाड़ा है जहां ये मेरिट के नाम पर समाज के दबे-कुचले तबक़े से आने वाले छात्रों के भविष्य के साथ खुलकर खेला जाता है. पर छात्रों ने जिस तरह इन मनुवादियों के खिलाफ़ मोर्चा खोला है, निश्चित ही भारतीय समाज पर उसका दूरगामी असर पड़ेगा.
22 जून को नयी दिल्ली में इनसाइट फ़ाउन्डेशन द्वारा बुलाई गयी एक बैठक में आईआईटी, दिल्ली के वैसे कुछ छात्रों ने संस्थान में दलित और पिछड़े तबक़े के छात्रों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में विस्तार से बताया था जिन्हें संस्थान ने कैंपस छोड़ देने का नोटिस दे चुकी है. तत्काल कैंपस न छोड़ने की स्थिति में उनसे 150 रुपए रोज वसूला जा रहा है . उन्होंने बताया कि उनकी जाति जानने के बाद शिक्षकों के तेवर अचानक कैसे बदल जाते हैं. अचानक कैसे शिक्षकों को यह लगने लगता है कि आरक्षण के सहारे आये इन मुट्ठी भर छात्रों के कारण इस प्रतिष्ठित संस्थान की साख में बट्ठा लग जाएगा. बस जाति खुल जाने की देरी है, उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के तरीक़े इज़ाद करने में तो माहिर ही हैं अध्यापक और प्रशासन के लोग. और तो और हॉस्टल और मेस में काम करने वाले कर्मचारी भी पीछे नहीं रह जाते हैं दलित छात्रों को अपनी औकात का एहसास कराने में.
ताज़ा घटनाक्रम के बारे में छात्रों का कहना था कि शिक्षकों द्वारा ख़ास तौर दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों को छात्रों को निशाना बनाने की यह कोई पहली घटना नहीं है. हर साल 3-4 बच्चों को कोई न कोई बहाना बनाकर संस्थान से निकाला जाता रहा है. इस बार मामला इसलिए बड़ा बन गया कि क्योंकि निष्कासित किए जाने वाले छात्रों की संख्या ज़्यादा थी. और ये छात्र फ़र्स्ट इयर से लेकर फ़ाइनल इयर तक के थे. छांत्रों ने ये बताया कि वहां कोई निश्चित परीक्षा प्रणाली नहीं है और न ही परीक्षा में पास होने के लिए कोई निर्धारित अंक. ऐसे में जम कर मनमानी करते हैं वहां के शिक्षक.
एक छात्र ने बताया कि जब भी छात्रों ने हॉस्टल में अंबेडकर जयंती मनाने की कोशिश की, प्रशासन ने नाकाम कर दिया. आईआईटी, दिल्ली के एससी/एसटी इम्प्लॉयज वेलफ़ेयर एसोसिएशन के महासचिव नरेंद्र भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं, ''स्टूडेंट्स को छोडिये, ऐडमिनिस्ट्रेशन हमें नहीं मनाने देता था अंबेडकर जयंती यहां पर. पिछले दो-तीन सालों ने हमने लड़-झगड़ कर बाबा साहब की जयंती पर कार्यक्रम करना शुरू किया है.''
26 जून 200 को सफ़र, एनसीडीएचआर, नैक्डोर, इनसाइट फ़ाउण्डेशन, JNUSU के संयुक्त तत्वाधान में JUSTICE FOR IIT STUDENTS के बैनर तले छात्रों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आईआईटी ने विरोध प्रदर्शन किया. 26 जून का वो विरोध प्रदर्शन भारत के छात्र आंदोलन और दलित आंदोलन के लिए एक महत्तवपूर्ण तारीख़ बन गया. दुनिया में श्रेष्ठ इंजिनीयर पैदा करने का दावा करने वाले इस संस्थान के 40 साल के इतिहास में 26 जून को किया गया विरोध-प्रदर्शन अब तक वहां किया गया किसी भी तरह का पहला प्रदर्शन था. इसने प्रशासन के होश ठिकाने लगा दिए. छात्रों के भविष्य के साथ किए जा रहे खिलवाड़ का जवाब मांगने जब प्रदर्शनकारी आईआईटी कैंपस में पहुंचे तो उनकी तो हवा ख़राब हो गयी. पूरा प्रशासन हरकत में आ गया. थोड़ी देर में ऐडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. महिला प्रदर्शनकारियों पर भी डंडा बरसाने की कोशिश की गयी और ये काम पुरुष सिपाही ही कर रहे थे.
प्रदर्शनकारियों ने जब छात्रों के निष्कासन का कारण पूछना शुरू किये तो स्टूडेंट वेलफेयर एस आर काले और डिप्टी डायरेक्टर एच सी गुप्ता की हालत ख़राब हो गयी, उनके जबान लड़खलड़ानें लगे. अ....आ.... के आगे बढ़ नहीं पाए. कक्षाओं और परीक्षाओं के इतर आईआईटी की रोज़मर्रा में छात्रों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में जब उनसे पूछा गया तो एक बार फिर उनकी घिघ्घी बंध गयी. बार-बार वे ये ही कहते रहे कि कमेटी बना दी गयी है, कमेटी का जो निर्णय होगा उसका वे पालन करेंगे. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि जो कमेटी गठित की गयी है वो छात्रों को अमान्य है, उसमें उत्पीड़कों के नुमांइदे ही हैं. प्रदर्शनकारियों ने मांग की जो भी कमेटी गठित की गयी है उसे तत्काल भंग किया जाए और नयी कमेटी गठित की जाए और उसमें निष्पक्ष लोगों को शामिल किया जाए. प्रदर्शनकारियों ने इसके लिए आईआईटी प्रशासन को 5 दिन का समय दिया.
बहरहाल, दलित और पिछड़े तबके के छात्रों के इस निष्कासन और उसके बाद राजधानी में शुरू हुए हलचल से यह तो स्पष्ट हो गया है कि उच्च शिक्षा का यह प्रतिष्ठित संस्थान मनुवादियों का बहुत बड़ा अखाड़ा है जहां ये मेरिट के नाम पर समाज के दबे-कुचले तबक़े से आने वाले छात्रों के भविष्य के साथ खुलकर खेला जाता है. पर छात्रों ने जिस तरह इन मनुवादियों के खिलाफ़ मोर्चा खोला है, निश्चित ही भारतीय समाज पर उसका दूरगामी असर पड़ेगा.
बुधवार, 25 जून 2008
कल IIT दिल्ली में धरना
पिछले दिनों ख़बर आयी कि इस साल आईआईटी दिल्ली में वार्षिक परीक्षा में लगभग दो दर्जन छात्रों को फेल कर दिया गया है. यह भी पता चला कि वहां परीक्षा और परिणामों की कोई नियत पद्धति नहीं है. शिक्षक अपने हिसाब से पास होने के लिए न्यूनतम अंक तय करते हैं, जो उनकी मर्जी के हिसाब से घटता-बढ़ता रहता है. इस पास-फेल के गेम में वैसे बच्चों को खास तौर से टारगेट किया जाता है जो पिछड़े इलाक़ों और समुदायों से आते हैं. जबरन फेल किए गए एक छात्र ने बताया कि आईआईटी दिल्ली में परीक्षा-परिणाम की घोषणा नोटिस-बोर्ड पर नहीं की जाती है, छात्रों को व्यक्तिगत ई मेल या फ़ोन के ज़रिए उनके परिणाम बताए जाते हैं. ज़ाहिर है, परीक्षा-परिणाम की घोषणा का यह तरीक़ा और कुछ भी हो पर पारदर्शी तो नहीं ही कहा जा सकता है.
इस महीने की शुरुआत में लगभग दर्जन छात्रों को परीक्षा में फेल बताकर संस्थान छोड़ने का नोटिस जारी किया गया था. ऐसे ही कुछ छात्रों ने एससी/एसटी कमिशन में शिकायत दर्ज की थी जिसकी सुनावाई करते हुए विगत 17 जून को आयोग ने संस्थान के डायरेक्टर और डीन को तलब किया और अगली तारीख़ पर इससे मुताल्लिक रिपोर्ट पेश करने को कहा. उसके बाद से आईआईटी प्रशासन ने जबरन फेल किए गए छात्रों को बुलाकर धमकाना और तरह-तरह का प्रलोभन देना शुरू कर दिया है.
आईआईटी प्रशासन की धांधली और छात्रों के भविष्य के साथ किए जा रहे खिलवाड़ के खिलाफ़ विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के छात्रों, शिक्षकों एवं दिल्ली के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कल दिनांक 26 जून 2008 को सुबह 10.30 बजे आईआईटी मेन गेट पर धरने का निर्णय लिया है. आप तमाम इंसाफ़ पसंद लोगों से आग्रह है कि इस धरने में शामिल हों और उच्च शिक्षा के इस संस्थान में प्रशासन के पक्षपातपूर्ण व्यवहार का प्रतिवाद करें.
इस महीने की शुरुआत में लगभग दर्जन छात्रों को परीक्षा में फेल बताकर संस्थान छोड़ने का नोटिस जारी किया गया था. ऐसे ही कुछ छात्रों ने एससी/एसटी कमिशन में शिकायत दर्ज की थी जिसकी सुनावाई करते हुए विगत 17 जून को आयोग ने संस्थान के डायरेक्टर और डीन को तलब किया और अगली तारीख़ पर इससे मुताल्लिक रिपोर्ट पेश करने को कहा. उसके बाद से आईआईटी प्रशासन ने जबरन फेल किए गए छात्रों को बुलाकर धमकाना और तरह-तरह का प्रलोभन देना शुरू कर दिया है.
आईआईटी प्रशासन की धांधली और छात्रों के भविष्य के साथ किए जा रहे खिलवाड़ के खिलाफ़ विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के छात्रों, शिक्षकों एवं दिल्ली के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कल दिनांक 26 जून 2008 को सुबह 10.30 बजे आईआईटी मेन गेट पर धरने का निर्णय लिया है. आप तमाम इंसाफ़ पसंद लोगों से आग्रह है कि इस धरने में शामिल हों और उच्च शिक्षा के इस संस्थान में प्रशासन के पक्षपातपूर्ण व्यवहार का प्रतिवाद करें.
मंगलवार, 24 जून 2008
सफ़र के नए स्टीकर
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