सोमवार, 5 नवंबर 2007

हमारा सामुदायिक घर ताड़ी की गद्दी है ...

रामप्रवेश राम

तरियानी छपरा गांव में कुछ अनुसूचित जाति मोहल्लों में विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत सामुदायिक भवन और चौपाल निर्माण करवाया गया है. हमारे टोले में भी कहने के लिए दो सामुदायिक भवन और चौपाल है. सफ़र के कार्यकर्ताओं ने गांव की सार्वजनिक संपत्ति के बारे में जब से दस्तावेज़ीकरण करना शुरू किया है तब से मेरा ध्यान भी इस पर गया है.

हालांकि ऐसा नहीं है कि पहले मैं इसके बारे में नहीं सोचता था, पर तब मैंने ये नहीं सोचा था कि इस पर भी कुछ लिखा-पढ़ा जा सकता है. लेकिन जब अभय, विजय, विकास और सफ़र के अन्य साथियों ने अपने-अपने ने मोहल्ले और आसपड़ोस के सामुदायिक भवनों पर काम करना शुरू किया तब मैंने भी इस मसले पर विचार करना शुरू किया.

एक सामुदायिक चौपाल हमारे घर के ठीक बग़ल में है. पर कोई भी व्यक्ति देखकर उसे चौपाल नहीं कहेगा. मैं बचपन से इस चौपाल को देख रहा हूं. उपर से खपरैल और नीचे ईंट और सिमेंट की फ़र्श, और ईंट के ही पायों पर खड़ा यह चौपाल दरअसल अब ताड़ी और ताश का अड्डा बनकर रह गया है. दिन ढलते ही यहां ताड़ी पीने वालों का जमघट लग जाता है. ताश खेलने वाले तो ख़ैर, दिन भर लगे ही रहते हैं. वैसे लोग जिन्‍हें काम-धंधे में मन नहीं लगता है, जमे रहते हैं यहां.

टोले का ही एक व्यक्ति ताड़ी का कारोबार करता है. उसने चौपाल को दो तरफ़ से घेर दिया है, जिसमें वह ताड़ी रखता है और उसके मवेशी भी चौपाल के इर्द-गिर्द बंधे रहते हैं. देर रात तक लोग ताड़ी पीकर गाली-गलौज करते हैं और जमकर शोर मचाते हैं. आसपास के लोगों को इसके चलते बहुत परेशानी होती है. कई पियाक तो ऐसे हैं जो घर भी नहीं जाते हैं और रातभर हंगामा मचाते हैं.

कई बार ताड़ी का धंधा करने वाले को समझाने की कोशिश की गयी कि वो ये काम बंद कर दें. समझना तो दूर की बात, वो उल्टे समझाने वालों से झगड़ने लगता है और मारपीट पर उतारू हो जाता है. एक-आध बार मामला थाने में भी पहुंचा, लेकिन कोई ख़ास असर नहीं हुआ. शायद ले-देकर मामला रफ़ा-दफ़ा हो गया क्योंकि पुराना काम जारी ही रहा.

दूसरा सामुदायिक भवन जो थोड़ी दूर हटकर सड़क के किनारे है, उसकी हालत और भी जर्ज है. छप्पड़ भी टूट गया है. अब यह भवन शौचालय से ज़्यादा कुछ नहीं रह गया है. मैंने जब इसके बारे में अपने आसपास के लोगों से बातचीत की तो उनका कहना था कि कौन जाएगा उससे झगड़ा करने और सिर फोड़वाने. हालांकि कुछ महिलाएं ज़रूर इसके खिलाफ़ हैं और वो यहां से ताड़ी की गद्दी हटाने के लिए संघर्ष करने को भी तैयार हैं. पर एक बार फिर यही लगता है कि जबतक लोग एकजुट होकर इसका विरोध नहीं करेंगे सामुदायिक भवन पर ये क़ब्ज़ा बना ही रहेगा और सार्वजनिक सम्पत्ति का ऐसे ही दुरउपयोग होता रहेगा.

इन दोनों ही सामुदायिक भवनों के बारे में मैं और भी जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहा हूं.

1 टिप्पणी:

Delhi Greens ने कहा…

hello

Hindi mein yeh blog dekh kar bahut acha laga! Taadi ke baare mein humne bhi bahut suna hai!!

I came here from the delhi bloggers wiki.

I (also) represent an organisation called the oceanic group...that carries out seminars..particularly on the issue of climate change in delhi. Our next venture may take us to patna...and we are at present active in delhi, bihar and nepal.

If you want to get in touch, plz do so at govind@delhigreens.org or by calling me here at 9811147754. I would put you across to the prez of the oceanic group..depending on what you want to do.

Regards
Govind